निपाह का कहर: जानें कैसे बच सकते हैं इस जानलेवा वायरस से
निपाह वायरस से संक्रमित होने पर मनुष्यों का श्वसन तंत्र और तंत्रिका तंत्र प्रभावित होते हैं। इसे पोर्सिन रेस्पिरेटरी और न्यूरोलॉजिक सिंड्रोम या इंसेफेलिटिक सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है। निपाह वायरस चमगादड़, सूअर या दूषित खाद्य पदार्थों के माध्यम से फैलता है, और यह सीधे मनुष्य से मनुष्य में भी फैल सकता है। खासकर टेरोपोडिडे परिवार के फल चमगादड़ निपाह वायरस के प्राकृतिक मेजबान हैं।
निपाह वायरस क्या है ?
निपाह वायरस (NiV) एक जूनोटिक वायरस है, जो जानवरों से मनुष्यों में फैलता है और दूषित भोजन के माध्यम से या सीधे व्यक्ति से व्यक्ति में फैलता है। इसकी पहचान सबसे पहले 1999 में मलेशिया में सुअर पालन करने वाले किसानों में हुई थी। 2001 में बांग्लादेश और पूर्वी भारत के सिलीगुड़ी में इस बीमारी की पहचान की गई, और तब से हर साल इसका प्रकोप होता रहा है।
संक्रमण के स्रोत
मानव में संक्रमण बीमार सूअरों के स्राव के असुरक्षित संपर्क या उनके दूषित ऊतकों के सीधे संपर्क से उत्पन्न होता है। बांग्लादेश और भारत में संक्रमित फल चमगादड़ों के मूत्र, रक्त और नाक, लार से दूषित फलों या फलों से बने उत्पादों जैसे कच्चे खजूर के रस के सेवन से सबसे ज्यादा संक्रमण हुआ।
लक्षण
संक्रमित व्यक्ति में पहले बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी, गले में खराश, खांसी और श्वास संबंधित समस्याएं आती हैं। फिर दिमाग़ में सूजन आने से मानसिक स्थिति में परिवर्तन होते हैं, जिससे चक्कर आना, उनींदापन, चेतना में बदलाव, दौरे जैसे न्यूरोलॉजिकल संकेत मिलते हैं और बाद में कोमा में जाकर मृत्यु हो सकती है। तीव्र संक्रमण होने पर व्यक्ति 24 से 48 घंटों के भीतर ही कोमा में जाकर मृत्यु को प्राप्त हो सकता है।
संक्रमण की अवधि
संक्रमण से लेकर लक्षण दिखने तक का अंतराल 4 से 14 दिनों का होता है। कुछ मामलों में 45 दिनों तक की अवधि वाले संक्रमित भी पाए गए हैं। ज्यादातर लोग तीव्र इंसेफेलाइटिस से पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, लेकिन 20% रोगियों में दीर्घकालिक न्यूरोलॉजिकल लक्षण बने रह सकते हैं।
परीक्षण
शारीरिक तरल पदार्थों से वास्तविक समय पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (RT-PCR) और एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट परख (ELISA) के माध्यम से एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है। अन्य परीक्षणों में पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR) परख और कोशिका संवर्धन द्वारा वायरस पृथक्करण शामिल हैं।
निपाह वायरस के वाहक
फल चमगादड़ों के अलावा, पालतू पशुओं में सूअर, घोड़े, बकरी, भेड़, बिल्ली और कुत्ते निपाह वायरस के वाहक हो सकते हैं। निपाह वायरस के प्रकोप की सूचना सबसे पहले 1999 में मलेशिया में मिली थी।
रोकथाम
- सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का प्रयोग करें।
- खांसते और छींकते समय रुमाल या टिश्यू पेपर का उपयोग करें।
- फ्लू से संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाए रखें।
- सुअरों में निपाह वायरस की नियमित जांच करवाएं।
- सुअर फार्मों की सफाई और कीटाणुशोधन करें।
- संक्रमित जानवरों को मारकर सुरक्षित तरीके से दफनाएं या जलाएं।
- फलों को खाने से पहले अच्छी तरह धोकर और छीलकर खाएं।
यूनानी चिकित्सा
फिलहाल, निपाह वायरस के लिए कोई उचित दवा या टीका नहीं है। इसमें आराम, जलयोजन और लक्षणों का उपचार किया जाता है। इसमें निम्नलिखित यूनानी औषधियों का उपयोग किया जा सकता है:
- हब्बे बुखार
- शर्बत खाकसी
- खमीरा आबरेशम हकीम अरशद वाला
- लऊक सपिस्ता
- शर्बत सिनफ्लू
- इन्फ्लूएंजा ड्रॉप
- जवारीश तमरहिंदी
- हब्बे अजारकी
ईलाज अनुभवी यूनानी चिकित्सक द्वारा ही कराएं।
निपाह वायरस से बचाव के लिए जागरूकता और सावधानी आवश्यक है। संक्रमित क्षेत्रों में लोगों को सतर्क रहना चाहिए और उचित सावधानियां बरतनी चाहिए। यूनानी चिकित्सा भी निपाह वायरस के लक्षणों के उपचार में सहायक हो सकती है।
डॉ. लियाकत अली मंसूरी
(यूनानी चिकित्सक एवं हिजामा स्पेशियलिस्ट)
ज़िला अधिकारी (जयपुर शहर),
एस.एम.एस.अस्पताल,
जयपुर (राज.)