कारगिल युद्ध: अदम्य इच्छाशक्ति और देशभक्ति का प्रतीक, पढ़ें…कारगिल युद्ध की पूरी कहानी

यह 1999 की गर्मियों की बात है, जब भारत के उत्तर में स्थित लद्दाख क्षेत्र के कारगिल जिले में भारतीय सेना और पाकिस्तानी घुसपैठियों के बीच एक ऐतिहासिक संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष को बाद में ‘कारगिल युद्ध’ के नाम से जाना गया। यह युद्ध भारतीय सेना की वीरता, साहस और अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक बन गया।

कारगिल युद्ध की शुरुआत मई 1999 में हुई, जब भारतीय सेना को पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने नियंत्रण रेखा (LOC) के पार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है और ऊँची चोटियों पर कब्जा जमा लिया है। यह समाचार भारतीय सेना और सरकार के लिए एक बड़े आघात के रूप में आया। इस क्षेत्र का रणनीतिक महत्व अत्यधिक था, क्योंकि इन चोटियों पर कब्जा जमा लेने से पाकिस्तान को श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर नियंत्रण मिल सकता था, जो कि भारतीय सेना के लिए जीवनरेखा समान था।

भारतीय सेना ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए ‘ऑपरेशन विजय’ का शुभारंभ किया। अत्यधिक ऊंचाई, कठोर मौसम और दुश्मन की मजबूत स्थिति ने भारतीय सैनिकों के सामने कठिन चुनौतियाँ खड़ी कीं। फिर भी, हमारे वीर जवानों ने हार नहीं मानी। उनकी हिम्मत और देशभक्ति ने उन्हें इस कठिन संघर्ष में अदम्य साहस दिखाने के लिए प्रेरित किया।

कैप्टन विक्रम बत्रा, एक नाम जो इस युद्ध में सबसे ज्यादा गूंजा। उन्होंने अपने अद्वितीय साहस और नेतृत्व के बल पर अपने साथियों का हौसला बढ़ाया। ‘ये दिल मांगे मोर!’ उनका नारा बन गया, जो पूरे देश में गूंज उठा। कैप्टन बत्रा ने अपने अद्वितीय वीरता से दुश्मन के कई बंकरों को ध्वस्त किया और अंततः इस संघर्ष में शहीद हो गए। उनकी बहादुरी को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

इसी तरह, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, जिन्होंने अपने अदम्य साहस से दुश्मन के कब्जे वाली चोटियों को पुनः प्राप्त किया। उनकी बहादुरी और बलिदान को भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इन वीर योद्धाओं की कहानियाँ आज भी हमें गर्व और प्रेरणा देती हैं।

जुलाई 1999 में भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की। यह जीत न केवल सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, बल्कि इसने पूरे देश को एकजुट कर दिया। हमारे सैनिकों के साहस, बलिदान और उनकी अटूट देशभक्ति ने इस विजय को संभव बनाया।

कारगिल विजय की कहानी एक यादगार अध्याय है, जो हमें यह सिखाती है कि जब देश पर संकट आता है, तब हमारे वीर जवान अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी देश की रक्षा करने से पीछे नहीं हटते। यह विजय हमारी सेना के अदम्य साहस, प्रतिबद्धता और बलिदान की गाथा है, जिसे हम सभी को हमेशा याद रखना चाहिए।

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