म्हारो प्यारो बालम छ:,
छैल छबीलो नखरालो।
मस्तानू,दिवानू,मनमौजी,
छ यह तो खूब हंसालू।
म्हारा मन को मेंलू छ,
जाण म्हारी मन की बात।
म्हारी भी राय जरुर लें छ,
घर म छोटी हो या बड़ी बात।
खूब कर छ म्हारी देखभाल,
राखा छ मारो सारो ख्याल।
आछ्यो व पुरो धर्म निभाव छ,
इ नन्याण म का भारी जाल।
कह मल्यो छ मनह या बात,
घर सूं न जाव कोई खाली हाथ।
तू छ म्हारी घर की नार,
म छूं थारो प्यारों भरतार।
आपां दोनों मिलस्या ही,
होवें जीवन को बेडा पार।
म्हारा हर दुःख दर्द म,
रिज्यो खड़ी म्हारी लार।
थांकी हर बात को करूं छूं,
म हरदम घणू घणू एतबार।
थांको गहरो विश्वास ही छ,
म्हारी सफलता को आधार।
थे छो म्हारा प्यारा बलम,
मोतियां रा गला का हार।
म छूं थांकी सैयाणी नार,
अकेली न छोड़ ज्यो सरदार।
खूब करो थे नित तरक्की,
थांकी शान ही म्हारो छ मान।
खड़ी थांकी लार सीनों तान,
थांसू म्हारी बण छः पहचान।
थे छो म्हारी कालज्या री कोर
करवा चौथ का लाड़ला चांद।
आपणों सुहाग सदा बणयो र,
करतार न करता रिज्यो याद।
हंसराज हंस
कवि एवं साहित्यकार
टोंक राजस्थान।